रानीगंज-गुरुवार होलिका दहन होने के बाद देशभर में दूसरे दिन होली का त्यौहार मनाया जाएगा. होली के त्यौहार में हर घर के लोग पर्व मनाने की तैयारी में जुट जाते हैं. होली में बाजार को लेकर दुकानदारों ने कहा कि पिछले 2 साल कोरोना महामारी की वजह से बाजार मंदा था, लेकिन इस साल कोरोना के केस कुछ हद तक कम होने की वजह से एक बार फिर से बाजार में रौनक लौट आई है, लोग खरीदारी करने घर से बाहर निकल रहे हैं. बाजार में तरह-तरह के रंग और गुलाल लोगों के लिए बिक्री किए जा रहे हैं.बच्चों की पिचकारी भी इस बार अच्छी खासी बिक रही है. शुक्रवार और शनिवार की होली के लिए पहले से ही लोग बाजार में खरीददारी करने जुटे हुए हैं. वहीं दूसरी औऱ रानीगंज का प्रसिद्ध सीताराम जी भवन में मारवाड़ी समाज की महिलाओं द्वारा राजस्थानी परम्परा के अनुसार पूजा अर्चना किया. मारवाड़ी समाज में होलिका दहन के दिन सुबह से ही महिलाएं उपवास रखती है और शाम को अपना व्रत खोलती है. रात के वक्त जहां होलिका दहन की जाएगी.जहां गोबर से बने कंडे जलाने के साथ साथ जो एवं चने की बालियां जलाएंगे. ततपश्चात होलिका दहन की आग को विभिन्न पात्रों में लाकर अपने घर दुकान के बाहर जलाएंगे. ऐसा माना जाता है कि इस होलिका दहन के आग से उनके जान माल की रक्षा बिष्णु भगवान के परम भक्त पहलाद करेंगे. शुक्रवार सुबह होली का त्यौहार मनाया जाएगा,कहीं कहीं शनिवार को होली मनाई जाएगी. वैसे होली मनाने के पीछे एक प्राचीन कथा है .हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक दैत्य राज था . वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था. इसलिए अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की. आखिरकार ईश्वर का उसे वरदान मिला.लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा. इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था. बेटे द्वारा उसकी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया. उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी,भगवान की कृपा से होलिका जलकर राख हो गयी. होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है. इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होलीका जलाई जाती है.









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