जामुड़िया- ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के श्रीपुर-सातग्राम क्षेत्र में प्रबंधन की कथित मजदूर विरोधी नीतियों, भ्रष्टाचार और लापरवाही के खिलाफ गुरुवार को वामपंथी श्रमिक संगठन कोलियरी मजदूर सभा ऑफ इंडिया , सीटू से संबद्ध, ने ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन किया और जनरल मैनेजर को एक ज्ञापन सौंपा.
संगठन ने कोलियरी को निजी हाथों में देने वाली एमडीओ नीति को निरस्त करने और विभागीय पद्धति से खदानों के संचालन की प्रमुख मांग की.
14 सूत्रीय ज्ञापन में प्रमुख मांगें
सीटू की ओर से सौंपे गए 14 सूत्रीय ज्ञापन में कोलियरी को एमडीओ के तहत चलाने की नीति को तत्काल निरस्त किया जाए और विभागीय मेकेनाइज्ड पद्धति से उत्पादन शुरू हो. एस एसएस आई आर माइनस (खदान) में लगभग 3.5 मिलियन टन कोयला भंडार होने के बावजूद उत्पादन बंद है, इस खदान को तत्काल पुनः चालू किया जाए. जे.के. नगर, चपुई खास, सातग्राम इंक्लाइन, भनोरा वेस्ट ब्लॉक, कालीपहाड़ी प्रोजेक्ट जैसी अपार संभावनाओं वाली खदानों को एमडीओ को देने से बचा जाए और इनमें विभागीय उत्पादन व आधुनिक तकनीक का उचित निवेश किया जाए. खदानों में श्रमिक सुरक्षा पर और ज्यादा जोर दिया जाए. मजदूर सुरक्षा समितियों की नियमित बैठकें सुनिश्चित हों. अंडरग्राउंड से श्रमिकों को खदान के ऊपर स्थानांतरित करने के मामले में हर नियम का कड़ाई से पालन किया जाए. संगठन ने खेद व्यक्त किया कि प्रबंधन लगातार बातचीत से बच रहा है. ज्ञापन में नियमित त्रिपक्षीय बैठकें बुलाने और पूर्व की मांगों पर शीघ्र कार्यवाही करने की मांग की गई.
यह विरोध प्रदर्शन सभापति देवीदास बनर्जी, वक्ता मनोज दत्त, जी के श्रीवास्तव, कलीमुद्दीन अंसारी, शीतल चक्रवर्ती, और हिमाद्रि चक्रवर्ती जैसे प्रमुख नेताओं के नेतृत्व में किया गया.
मनोज दत्ता ने प्रबंधन को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि प्रबंधन द्वारा एमडीओ नीति लागू कर खदानों को निजी हाथों में देने की कोशिश की जा रही है, यह मजदूरों के हितों पर सीधा हमला है. हम निजीकरण का कड़ा विरोध करते हैं.अगर प्रबंधन ने मजदूरों की आवाज़ नहीं सुनी, और भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगी, तो आने वाले दिनों में संघर्ष और बड़ा, और निर्णायक आंदोलन खड़ा होगा.”
सीएमएसआई ने आरोप लगाया कि प्रबंधन त्रिपक्षीय और द्विपक्षीय बैठकें टाल रहा है, जिससे न केवल मजदूरों के वैध अधिकारों का हनन हो रहा है, बल्कि ‘विज़न 2022’ और कोल इंडिया की पूर्व योजना के बावजूद उत्पादन योजनाएं ठप पड़ी हैं.











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