बांकुडा-बांकुड़ा का लक्ष्यातरा महाश्मशान जिले का सबसे बड़ा श्मशान घाट है, जहां हर साल भव्य काली पूजा का आयोजन होता है। लाखों रुपए का बजट और हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ इसे जिले की सबसे चर्चित काली पूजा बनाती है।
इस साल की थीम है — “राजस्थानी राजमहल”। पूरा पंडाल ऐसे सजा है कि देखने वालों को लगे मानो सोने से बना हुआ महल हो। दृश्य बिल्कुल वैसा, जैसा सत्यजीत राय की प्रसिद्ध फिल्म “सोनार किला” में दिखाया गया था — बांकुड़ा में मानो उतर आया हो जैसलमेर का किला।
पूरे पंडाल में जगमगाती लाइटिंग, राजस्थानी पुतलों की सजावट और तंत्र-मंत्र की छाप के साथ हो रही है “डाकात काली” और “श्मशान काली” की पूजा। जिलेभर में इस आयोजन को लेकर उत्सुकता তুঙ্গে।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
तांत्रिक और शास्त्रीय — दोनों ही विधियों से मां काली की पूजा की जाती है। बताया जाता है कि ब्रिटिश काल में वाराणसी से मां भवतारिणी की प्रतिमा बांकुड़ा लाई गई थी। पहले यह प्रतिमा प्रसिद्ध डाकुओं के यहां पूजी जाती थी।
साल 1968 में जब डाकुओं का प्रभाव घटा, तब गंधेश्वरी नदी के पार से मां की मूर्ति को लक्ष्यातरा महाश्मशान में स्थापित किया गया।
यह कालीक्षेत्र लगभग 300–350 वर्ष पुराना है। यहां मां भवतारिणी की पूजा शास्त्रविधि से और श्मशान काली की पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है।
35 लाख का बजट, चंदननगर और रणिगंज से आई रोशनी
महाश्मशान समिति के सचिव अभिजीत दत्ता के अनुसार,
“इस बार पूजा का बजट करीब 34 से 35 लाख रुपए का है। लाइटिंग रणिगंज और चंदननगर से मंगाई गई है। भारी भीड़ की संभावना को देखते हुए प्रशासन और पुलिस ने पूरी तैयारी कर ली है। विशाल मेला भी लगेगा।”
पूजा के साथ जारी रहेगा श्मशान का नियमित कार्य
श्मशान प्रबंधन समिति ने बताया कि पूजा के दौरान भी श्मशान का नियमित कार्य शवदाह 24 घंटे जारी रहेगा।
इसके लिए विशेष व्यवस्था की गई है ताकि श्रद्धालु पूजा का आनंद ले सकें और साथ ही अंतिम संस्कार के कार्यों में कोई बाधा न आए।
सोने जैसे झिलमिल पंडाल, तांत्रिक अनुष्ठान और काली की भव्य आराधना — बांकुड़ा का लक्ष्यातरा महाश्मशान एक बार फिर बन गया है जिले का सबसे अनोखा पूजा स्थल।









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