रानीगंज-संथाली लिपि 'ओलिचिकी' के जनक पंडित रघुनाथ मुर्मू की 117 वीं जयंती पर बुधवार को विविध कार्यक्रम आयोजित किए गए.तीराट कोलियरी अंचल के आठपाड़ा की ओर से प्रभात फेरी निकाली गई. रघुनाथ मुर्मू जयंती के उपलक्ष पर पूजा पाठ का भी आयोजन किया गया ,साथ ही दामोदर नदी से जल भरकर लाया गया.इस कार्यक्रम में रानीगंज पंचायत समिति के खाद्य विभाग के सुधीर सोरेन, पूर्व पंचायत सदस्य सनातन माझी, आठपाड़ा अध्यक्ष विश्वनाथ माडी, हरि साधन हेंब्रम, परेश मंडल आदि उपस्थित थे. दरअसल आदिवासियों की समृद्ध भाषा संथाली के मौजूदा स्वरूप के पीछे एक आठ साल के बच्चे की जिद और जुनून है 1925 के पहले तक यह संथाली गांवों में सिर्फ बोली जाती थी. इसके न वर्ण थे न अक्षर. आठ साल केसंजय रघुनाथ मुर्मू ने अपनी ही भाषा में पढ़ने की ठानी.प्रकृति के उपासक आदिवासी समाज के उस बच्चे ने जल, जंगल, जमीन के संकेतों को समझकर वर्ण गढ़ना शुरू किए. 12 साल की मेहनत के बाद उस बच्चे ने संथाली भाषा की ओलचिकी लिपि का आविष्कार किया.दूसरी और बाँसड़ा एस टी डी क्लब की और से सिधु कानू मंच में पंडित रघुनाथ मुर्मू की और से जन्म जयंती मनाई गयी. इस अवसर पर रघुनाथ मुर्मू के फोटो पर माल्यदान कर संस्था के सचिव संजय हेम्ब्रम उनके जीवनी पर प्रकाश डाला.इस अवसर पर आदिवासी बच्चो द्वारा कविता पाठ की गयी.
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