कैट ने सरकार के पराली जलाने वाले किसानों को माफ करने पर कहा व्यापारियों पर भी बहुत छोटे कथित प्रदूषण के प्रतिबंधों को समाप्त किया जाए
कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने केंद्र सरकार द्वारा पराली जलाने वाले किसानों को माफ़ी दिए जाने पर की घोषणा पर घोर आपत्ति जताई है और कहा है कि किसानों को ऐसे विषय पर राहत दी जा रही है जिसके चलते दिल्ली और उससे जुड़े आसपास के सभी क्षेत्रों में लोगो की जान पर बन आयी है, और वही दूसरी तरफ अस्पताल, रेस्ट्रॉंट, छोटी छोटी फैक्टरियों , लघु उद्योग और छोटे कामगारों से निकली वेस्ट तथा प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध और व्यापारियों पर भारी जुर्माना यह कह कर लगाया जा रहा है की व्यापारिक गतिविधियों के चलते पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है जबकि पराली के मुक़ाबले इनके द्वारा कथित प्रदूषण लगभग नगण्य है । कैट ने केंद्र एवं राज्य सरकारों से इस निर्णय पर पुन विचार करने का आग्रह किया है । देश भर में यह संदेश जा रहा है की भीड़तंत्र के आगे लोकतंत्र ने घुटने टेक दिए हैं । यह सच्चाई है की आज़ादी के 75 वर्षों में आज भी देश का किसान घाटे की खेती कर रहा है । सरकारों और समाज का यह दायित्व है की किसान लाभ की खेती कैसे करें , उस पर गम्भीर विचार कर आवश्यक कदम उठाए जाएँ लेकिन तुष्टिकरण की नीति पर चलना देश हित में नहीं है ।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी सी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खंडेलवाल ने केंद्र सरकार एवं उसके बाद राज्य सरकारों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के इस दोहरे व्यवहार की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहा कि ये व्यापारियों के साथ अन्याय है और देश के संविधान में आजीविका के समान अधिकारों के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है । उन्होंने कहा की फ़ौरी तौर पर किया गए इंतज़ामों से प्रदूषण कभी कम नहीं होगा । प्रदूषण कम करने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाई जाए और उससे पहले प्रदूषण फैलाने वाले सभी कार्यों का अध्ययन हो और वैकल्पिक व्यवस्था का इंतज़ाम भी राष्ट्रीय नीति में शामिल होना चाहिए ।
श्री भरतिया और श्री खंडेलवाल ने कहा कि यह किसी से छुपा नही है कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषन का स्तर हर दिन बढ़ता जा रहा है।दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स औसतन 390 और 400 के पार पहुँच गया है और इसके लिए बहुत हद तक किसान भी ज़िम्मेदार है क्यों की उनकी लाख मिन्नतों के बाद भी उनका पराली जलाना जारी है। ऐसे में किसानों पर पराली जलाने पर सख्त कार्यवाही करने की बजाए उनके खिलाफ दर्ज मुकदमों को वापस लेने और यही नही उनपर लगाए गए जुर्मानों को भी माफ़ करना कई गम्भीर सवाल खड़े कर रहा है। वही दूसरी तरफ व्यापारिक गतिविधियों और कमर्शियल वाहनों पर पाबंदी लगाना और जरा सी बात पर भारी जुर्माना लगाना सरकार के भेदभाव पूर्ण रवैये को दर्शाता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि यदि सरकार पराली जलाने पर किसानों को माफ़ी दे सकती है तो फिर व्यपारियो के साथ इतनी सख्ती क्यों?
श्री भरतिया एवं श्री खंडेलवाल किसान अन्नदाता नहीं है बल्कि अन्न उत्पादनकर्ता है जिस नाते से उनका सम्मान होना और उन्हें लाभ की खेती प्रदान करना देश का फ़र्ज़ है लेकिन दूसरी तरफ़ व्यापारी भी सामान प्रदाता हैं जो अनेक प्रकार के क़ानूनों का पालन करने के बाद विपरीत परिस्थितियों में भी देश के कोने कोने में सामान उपलब्ध कराता है तो फिर हर समय व्यपारियो को ही कटघरे में खड़ा किया जाता है जब कि वे हर विषम परिस्थितियों में देश की जनता और सरकार के साथ खड़े होते है। किसी भी आपदा की स्थिति में व्यापारियों ने अपनी परवाह किये बिना दूसरों के लिए कार्य किया है कोविद से लड़ते देश की रीढ़ की हड्डी अगर चिकित्सक थे तो व्यपारियो ने भी आमजन के लिए अपनी जान जोखिम में डालने से गुरेज़ नही किया है तो फिर हर बार व्यापारियों के साथ ही सौतेला बरताव क्यों।
श्री भरतिया एवं श्री खंडेलवाल ने आगे कहा कि व्यापारी देश हित मे कभी भी अपनी भागीदारी से पीछे नही रहे है और अगर व्यापारिक गतिविधियों से प्रदूषण का स्तर बढ़ा है तो व्यापारियों ने स्वयं ही खुद पर अंकुश भी लगाया है पर सरकार का यू खुलेआम भेदभाव करना हमारे अस्तित्व पर सवाल खड़े करता है ।यह भी किसी से छुपा नही है कि सरकार का यह फैसला उत्तर प्रदेश चुनावों के मद्देनजर लिया गया है तो ऐसे में देश का व्यापारी भी अब चुप नही बैठेगा और अपने साथ हो रहे अन्याय का जवाब अब व्यापारी भी आने वाले चुनावों में देगा। और हम ये साबीत कर देंगे कि हम भिखारी नही देश के जेम्मेदार नागरिक है और हमे भी समान अधिकार प्राप्त है।









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